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સાવરકરજી વિશે નિવેદન મામલે રાહુલ ગાંધી ઉપર સામાજીક આગેવાના સોશિયલ મીડિયા મારફતે પ્રહાર

સાવરકરજી વિશે નિવેદન મામલે રાહુલ ગાંધી ઉપર સામાજીક આગેવાના સોશિયલ મીડિયા મારફતે પ્રહાર

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વીર સાવરકારજી વિશે કોંગ્રેસના સિનયિર નેતા રાહુલ ગાંધીએ કરેલા નિવેદન બાબતે વિવાદ વકર્યો છે. સાવરકરજીને અનુસરતા સામાજીક અને રાજકીય આગેવાનો રાહુલ ગાંધી તથા કોંગ્રેસ ઉપર આકરા પ્રહાર કરી રહ્યાં છે. દરમિયાન સામાજીક કાર્યકર સુશીલ પંડિતએ સોશિયલ મીડિયામાં એક પોસ્ટ કરી છે, જેમાં સાવરકરજીનો વિરોધ કરનાર રાહુલ ગાંધીને આડે હાથ લીધા હતા, સુશીલ પંડિતે સોશિયલ મીડિયામાં શુ પોસ્ટ કરી છે વાંચો…

https://www.facebook.com/663071909/posts/pfbid035dnuYtQyoCkDgFM69d3QF185GfPMj2FhS4EzqxFH3dLxyvJsUZ1uRM65nKB9PUcFl/?mibextid=Nif5oz

आसान नहीं सावरकर होना!

तुम कहते हो

मैं सावरकर नहीं हूँ,

यह सही है।

तुम सावरकर हो भी नहीं सकते।

इसके लिए वीरता प्रथम चरण है और आत्मोत्सर्ग अंतिम।

नौ वर्ष की वय में हैजे से माँ की मृत्यु,

सोलह वर्ष की वय में पिता की मृत्यु,

कांटेदार बचपन में अपनी जड़ों को पकड़े रहना सावरकर है।

मातृभूमि को माँ समझना और इस समझ को जकड़े रहना सावरकर है।

सोने का चम्मच लेकर

विदेशों में छुट्टियां मनाने वाले स्वातंत्र्यवीर नहीं होते।

जिन्होंने अपने दल को ही सामन्तवाद से स्वतंत्र नहीं किया,

जहाँ परिवार ही राष्ट्र है

और परिवार के प्रति श्रद्धा ही राष्ट्रभक्ति है,

वहाँ सावरकर जन्म नहीं लेते।

वहां जन्म लेती है सत्ता-लोलुप मानसिकता,

जिसके लिए किसी और का सत्ता में होना राष्ट्रद्रोह है।

एक सावरकर ‘द इण्डियन वॉर ऑफ़ इण्डिपेण्डेंस : 1857’ लिखता है

और चीख चीखकर संसार को बता देता है,

कि हम बेचैन हैं आज़ादी के लिए।

कि हमारे पुरखों ने जान दी थी १८५७ में,

और वह ग़दर नहीं था,

वह आज़ादी की पहली लड़ाई थी…

ऐसा सच बोलने के लिए साहस चाहिए। वह साहस तुमने नहीं दिखाया।

जब कश्मीर के पंडितों का नरसंहार होता रहा, तुम इसे एक छिटपुट घटना सिद्ध करते रहे और आज भी कर रहे हो।

जिस ‘साहस’ को ‘गाँधी’ उपनाम की पूंजी बताकर इतराते हो, वह साहस गांधी महात्मा से चुराई हुई पूंजी है, तुम्हारे गांधी परिवार की नहीं…

“द हिस्ट्री ऑफ़ द वॉर ऑफ़ इण्डियन इण्डिपेण्डेन्स” लिखने के लिए एक मनन चाहिए और अध्ययन

जो पुस्तकालयों में नहीं मिलता।

अध्येता नहीं मिलते, पुस्तकें खुली हैं खुले आसमान में

एम॰एस॰ मोरिया जहाज के सीवर-होल से रास्ता बना लेना सबके बूते की बात नहीं।

असीम समुद्र की छाती को चीरना,

सूर्यास्त-विहीन सशक्त राज्य को लांघकर मनुष्य के असीम सामर्थ्य और सम्प्रभुता को सिद्ध करना हनुमत्ता है।

लंका में रहकर लंका की जड़ें खोदना सावरकर है…

दो आजन्म कारावास मिल जाना ही प्रमाण है उस वीरता का

जिसे न देखने के लिए तुम्हारे चश्मों की प्रोग्रामिंग बदल दी गयी है।

और तुम नहीं जानते कि

तुम बहुत छोटे हो उस सूर्य को उंगली दिखाने के लिए

जिसे उस मौलिक गांधी ने भी वीर कहा था।

सेलुलर जेल में कोल्हू का बैल बनकर नारियल से तेल निकालना

एक आरामतलब युवराज कैसे समझ सकता है,

जिसके जीवन की कुल जमापूंजी केवल एक उपनाम है।

तुम्हें देखकर ही समझ पाया

कि नाम में क्या रखा है?

तिलक और पटेल की सलाह पर देशसेवा के लिए क्षमा मांग लेना

और

सरकारी अध्यादेश की कापी फाड़ने पर क्षमा मांगना,

“चौकीदार चोर है” कह देना और फिर क्षमा मांगना,

एक रक्षा सौदे को घोटाला कहने पर क्षमा मांगकर न्यायालय के प्रहार से बचना,

इसमें अंतर है।

तुमने ठीक कहा

तुम सावरकर नहीं हो।

क्योंकि सावरकर मनुष्यता की असीम सम्भावनाओं के बीज का उपनाम है।

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